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मोनालिसा की आँखें

सुमन केशरी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14062
आईएसबीएन :9788126724840

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सुमन केशरी का यह नया संग्रह काव्य-कौशल की परिपक्वता और अनुभव के विस्तार के लिए उल्लेखनीय है।

मोनालिसा की आँखें सुमन केशरी की कविताएँ एक आधुनिक स्त्री की कविताएँ हैं: वे जितनी एक आधुनिक चौकस व्यक्ति हैं उतनी ही एक संवेदनशील और सजग स्त्री भी। उनमें एक गहरा अवसाद और प्रतिरोध है लेकिन चीख-पुकार नहीं। वे घटनाओं और आसपास जो हो रहा है उससे प्रतिकृत तो होती हैं लेकिन उसे नाटकीय वक्तव्य बनाने से बचती हैं। उनके पास आधुनिकता का अतिरेक नहीं, संवेदना का सहज संयम है। उनकी कविता में मोनालिसा, माँ, बेटी, पूर्वज, सपने, चिड़िया, मणिकर्णिका, सम्बन्ध, औरत सब जीवन की असंख्य छवियों में से कुछ की तरह विन्यस्त होते हैं। सुमन केशरी की कविता यह अहसास बनाए रखती है कि जीवन विस्तृत और अबाध है और कविता उस पर, उस विशाल और जटिल वितान पर ससंकोच खुली खिड़की भर है। उनकी कविता में कई मर्मचित्र हैं जो मन में बिंध से जाते हैं: ‘लहू का आलता लगाए’, ‘सुनो बिटिया/मैं उड़ती हूँ/खिड़की के पार चिड़िया बन/तुम आना’, ‘अपने ही तारे को/अस्त होते देखना/मरने जैसा है/धीरे...धीरे’, ‘पीठ दिए एक चिता को/धोती सुखाता दूसरी की आँच में/प्रेत-सा खड़ा’, ‘बिटिया बोली/चिड़िया का बच्चा बोला’, ‘चुटकी भर विश्वास/नमक-सा’ आदि। सुमन केशरी का यह नया संग्रह काव्य-कौशल की परिपक्वता और अनुभव के विस्तार के लिए उल्लेखनीय है।

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